दीपावली 2025: दिवाली कब है, काली पूजा व गोवर्धन पूजा की तिथि, मुहूर्त व महत्व
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दीपावली की फोटो

दीपावली 2025 कब है: दिवाली पर महानिशीथ काल में होगी काली पूजा, जानें तिथि, मुहूर्त और पूजा का महत्व

हर साल की तरह इस बार भी दीपावली को लेकर लोगों में उत्साह चरम पर है। लेकिन इस साल एक खास बात यह है कि दीपावली की सटीक तिथि को लेकर थोड़ी असमंजस की स्थिति बन गई है। कहीं 21 अक्टूबर का ज़िक्र है तो कहीं 20 अक्टूबर की बात हो रही है। तो आखिर 2025 में दीपावली कब है? और इस बार महानिशीथ काल में काली पूजा का क्या महत्व रहेगा? आइए जानते हैं विस्तार से।

दीपावली 2025 कब है?

इस बार 2025 में दीपावली सोमवार, 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी। दरअसल, 21 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल में नहीं मिल रही, इसलिए उस दिन मुख्य दीपावली नहीं होगी। जबकि 20 अक्टूबर की शाम को प्रदोष काल और अमावस्या तिथि दोनों एक साथ आ रहे हैं, जो इसे दीपावली पूजा के लिए श्रेष्ठ बना देता है।

प्रदोष काल: शाम 6:11 बजे से रात 8:41 बजे तक

महानिशीथ काल: रात 1:19 बजे से 3:33 बजे तक

काली पूजा मुहूर्त: रात 1:35 बजे से 3:33 बजे तक

दिवाली पर प्रदोष काल का महत्व

धर्मशास्त्रों में दीपावली पूजन में प्रदोष काल को सबसे शुभ समय बताया गया है।
‘प्रदोष’ का अर्थ है दिन और रात के मिलन का समय — यानी वह काल जब सूर्यास्त हो चुका हो लेकिन रात्रि पूरी तरह शुरू न हुई हो।

दिन को विष्णु स्वरूप माना गया है,

रात को माता लक्ष्मी का प्रतीक।
दोनों के संयोग का यही काल प्रदोष काल कहलाता है।

यही कारण है कि इस समय श्री गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

महानिशीथ काल और काली पूजा

जहां उत्तर भारत में दीपावली को लक्ष्मी पूजन का पर्व माना जाता है, वहीं पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में इस दिन मां काली की पूजा की जाती है।

काली पूजा निशीथ काल और महा निशीथ काल में की जाती है।

यह काल तांत्रिक साधना और आध्यात्मिक क्रियाओं के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।

रात 1:19 से 3:33 बजे के बीच का समय स्थिर लग्न सिंह में आता है, जिसे “महानिशीथ काल” कहा गया है।

इसी समय निशा पूजा, काली पूजा और तांत्रिक पूजा के लिए शुभ चौघड़िया लगती है।

दीपावली त्यौहार है खास – मिठाई और खुशियों का त्योहार है दिवाली

दीपावली का पंचदिवसीय पर्व

हालांकि दीपावली एक दिन का पर्व माना जाता है, लेकिन यह पाँच दिनों तक चलने वाला उत्सव है।
शास्त्रों में इसे यम पंचक कहा गया है, जिसमें यमराज, धनवंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और चित्रगुप्त की पूजा का विधान बताया गया है।

इन पाँच दिनों का विवरण इस प्रकार है —

तिथि पर्व विशेषता

18 अक्टूबर (शनिवार) धनतेरस धन्वंतरि जयंती, यम दीपदान, स्वर्ण-रजत क्रय शुभ
19 अक्टूबर (रविवार) काली चौदस हनुमान पूजा, नरक चतुर्दशी
20 अक्टूबर (सोमवार) मुख्य दीपावली लक्ष्मी पूजन, काली पूजा, नरक चतुर्दशी, केदार गौरी व्रत
21 अक्टूबर (मंगलवार) दिवाली स्नान अमावस्या देवपूजन
22 अक्टूबर (बुधवार) गोवर्धन पूजा अन्नकूट, बाली प्रतिपदा, गुजराती नव वर्ष
23 अक्टूबर (गुरुवार) भाई दूज यम द्वितीया, भाऊ बीज, चित्रगुप्त पूजा

धनतेरस का महत्व

दीपावली की शुरुआत होती है धनतेरस से।
इस दिन धनवंतरि देव और यमराज की आराधना की जाती है। गृहस्थ लोग यम दीप जलाकर अकाल मृत्यु से रक्षा की प्रार्थना करते हैं।

क्या करें इस दिन:

शाम को घर के दरवाजे पर दीपक जलाएं।

लक्ष्मी-गणेश की पूजा करें।

सोना, चांदी या बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है।

नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली

नरक चतुर्दशी को नरका चौदस भी कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन हनुमान जी का जन्म मेष लग्न में हुआ था, इसलिए हनुमान दर्शन का विशेष महत्व है।

इस दिन करें ये कार्य:

सरसों का तेल और उबटन लगाकर स्नान करें।

यमराज के निमित्त तर्पण करें।

चार बत्तियों वाला दीपक घर के बाहर जलाएं — प्रतीक है कि शुभता हर स्थान पर वास करती है।

दीपावली त्यौहार

मुख्य दीपावली और कालरात्रि की पूजा

दीपावली की रात को कालरात्रि कहा जाता है, जो तंत्र साधना के लिए सबसे प्रभावशाली रात्रि होती है।
औघड़ और तांत्रिक साधक इस रात महाश्मशान में अनुष्ठान करते हैं ताकि जनकल्याण हेतु सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकें।
वहीं सामान्य गृहस्थ लोग इस रात्रि में श्री गणेश और माता लक्ष्मी की आराधना करते हैं, ताकि घर में सुख-समृद्धि बनी रहे।

गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव

22 अक्टूबर (बुधवार) को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया जाएगा।
यह दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की स्मृति में मनाया जाता है।
लोग घरों और मंदिरों में अन्नकूट प्रसाद तैयार करते हैं और भगवान को भोग लगाते हैं।

गोवर्धन पूजा मुहूर्त:

सुबह 6:43 बजे से 8:52 बजे तक (कुल अवधि: 2 घंटे 9 मिनट)

भाई दूज: प्रेम और रक्षा का पर्व

दीपावली का आखिरी दिन भाई दूज या भाऊ बीज के नाम से जाना जाता है।
यह दिन भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।
बहन अपने भाई को टीका लगाती है, उसकी लंबी उम्र और सुख की कामना करती है।

टीका मुहूर्त:

23 अक्टूबर सुबह 6:22 बजे से रात 8:23 बजे तक

दीपावली के जलते हुए दिए

नतीजा (conclusion)

दीपावली केवल रोशनी का नहीं बल्कि आध्यात्मिक जागरण का पर्व है। यह समय है जब हम अपने भीतर की अंधकार रूपी नकारात्मकता को मिटाकर प्रकाश, प्रेम और समृद्धि की ओर बढ़ते हैं। चाहे आप लक्ष्मी पूजा करें या काली माता की आराधना — उद्देश्य एक ही है, जीवन में शुभता और प्रकाश लाना।

✨ आपको क्या लगता है, इस बार की दीपावली आप कैसे मनाने वाले हैं? अपना opinion comment में जरूर बताएं।

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